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________________ [१५७ भोजन शुद्ध व दोष रहित लेवे । (५) सपर्माविसंवाद-स्वधर्मी जनोंसे झगड़ा न करे, इससे सत्य धर्मका लोप होता है। . () सीकसे पचनेकी पांच माक्नाएंश्रीरागकथाश्रवणतन्मनोहराजनिरीक्षणपूर्वरतानुस्मरणवृष्येष्टामस्व शरीरसंस्कारत्यागाः पञ्च ॥ ७-७॥ (१) स्त्रीरागकथावण त्याग-स्त्रियों में राग बढ़ानेवाली कथाके सुनने का त्याग, (२) तन्मनोहरांगनिरीक्षण स्पाग-स्त्रियों के मनोहर भोंको राग सहित देखनेका त्याग, (३) पूर्वरतानुस्मरण स्थाग-पहले भोगोंके स्मरणका त्याग, (४) दृष्येष्टरस त्यागकामोद्दीपक इष्ट रस खानेका त्याग, (५) स्वशरीरसंस्कार त्यागअपने शरीर के श्रृंगार करने का त्याग । (५) परिग्रहसे पचनेकी पांच भावनाएं-ममता त्यागकी भावनाएं “ मनोज्ञामनोजविषयरागद्वेषवजनानि पंच । " अच्छे या बुरे पांचों इन्द्रियोंके पदार्थोमें राग व द्वेष नहीं करना । जो कुछ खानपान स्थान व संयोग प्राप्त हो उनमें संतोष रखना । इन्द्रियोंकी तृष्णाको मिटानेका यही उपाय है । सार समुखयम कहा हैममत्वान्जायते लोभो लोभाद्रागश्च जायते । रागाच जायते द्वेषो द्वेषाहुःखपरंपरा ॥ २३३ ॥ निर्ममत्वं परं तत्वं निर्ममत्वं परं सुखं । निर्ममत्वं परं बीजं मोक्षस्य कथित बुवैः ॥ २३४ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034856
Book TitleJain Bauddh Tattvagyan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1940
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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