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________________ १४६ ] (१) वचनगुप्ति - वचनकी सम्हाक, पर पीड़ाकारी वचन कहा जावे, (२) मनोगुप्ति-मनमे हिंसाकारक भाव न लाऊँ, (३) ईयासमिति चार हाथ जमीन आगे देखकर शुद्ध भूमिमें दिनों चलं, (४) आदाननिक्षेपण समिति-देखकर वस्तुको उठाऊं व रखं. (५) आलोकित पानभोजन देखकर भोजन व पान करूँ । (२) असत्य से बचनेकी पांच भावनाएं ܐ ܢ कोषको मभीरुत्वा स्यप्रत्याख्यानान्यनुवीचिभाषण च पश्च ॥ ५-७ ॥ (१) क्रोध प्रत्याख्यान - क्रोधसे बचूं क्योंकि यह मसत्यका कारण है । (२) लोभ प्रत्याख्यान - लोभसे बच्चूँ क्योंकि यह असत्यका कारण है । (३) भीरुत्व प्रत्याख्यान - मयसे बचूं क्योंकि यह असत्यका कारण है। (४) हास्य प्रत्याख्यान - हंसी से बचूं क्योंकि यह असत्यका कारण है । (५) अनुवीची भाषण - शास्त्र के अनुसार वचन कहूं । (३) चोरी से बचनेकी पांच भावनाएं शून्यागार विमोचतावास परोपरोधा करण मैक्ष्यशुद्धिधम्मविसंवादाः पच ।। ६-७ ॥ (१) शून्यागार - शूने खाली, सामान रहित, वन, पर्वत, मैदा - नादिमें ठहरना । (२) विमोचितावास छोड़े हुए, उजडे हुए मकानमें ठहरना । (३ परोपधाकरण- जहां आप हो कोई आवे तो मना न करे या जहां कोई रोक वहां न ठहरे। (४) मैक्ष्यशुद्धि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034856
Book TitleJain Bauddh Tattvagyan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1940
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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