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________________ - कि हलदीलामृतकाकादेलापुजाचिट्ठीदेनाईको | जलदपमबिवाहरचालेलिवा-अलगहोनेहैं इतनाभी दिशकालका विचारनहीकरनेकिएकमाथसाहातु गानेसेदेशमेंगदरहोजावेगाोरप्रत्येकपदार्थविवाह वालोंको अनिमहमा मिलेगा बसस्वार्थियोंकोक्याट्टा मिरयाजवान अपनी हत्याकरनेसेकामफसनसीएक हीसाथ लूटलेनेहैं इसबीचमारोंके कुलबिवाहने | ष्ट और मायाकेमहीने में बना दिया और उनकोयह मयदेदिया किफिरने.दिनोंमेंसाहाहीनहीं हैरहस्य ती डूब जावेगी कुल चमारोंने तीनतीन ओरचारचार | बर्षके लड़के लड़कियों के विवाहछेड़दियजेष्टक भारंभसेसायाद के अन्ननकहमारेहालीपालियोंको दोलकेनाचसे एकलहमाभी फरसननमिलीओरय ही खेनी क्रममासमय और दोनोफसलोकासिरथाब समारीजमीननप्पड़पोरबंजडपड़ी रहगईअवक होभाईकाश्तकारों जमीदा यह हमारीतुम्हारीखे नीड्वीयाकिपोपजीकीरहस्पतीड्बीजोइनजोनषि यां केघर खाने कोनहीथानोहमहीसेकहातोना नाहमहीमिरमाथामारकेऐकसेरवाटा औरगुडकी डली औरएकमनसरी पैसानो चमारोंसे मिलाहैथा। लीमेंयहसामग्रीलेजाकरपोयनी कीभेटकरने । - - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034854
Book TitleJain Aur Bauddh ka Bhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHermann Jacobi, Raja Sivaprasad
PublisherNavalkishor Munshi
Publication Year1897
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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