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________________ - परजोरटथवी समकस्थानएर घूमतीदई सूर्य चन्द्रमाके बीच भाजावेगी औरऐथीकामाय चन्द्रमाके ऊपरइननी देररहेगा फिरवहथूमते| त्येप्रलगहोनेसेसूर्य की खुली किरण चन्द्र मापैपड्रैगीनवग्रहायानी सायाहट जावेगा। जैसे कोई हिसाबलगाकरबतादेकि कल पडवा हसायंकाल के समय पश्चिम दिशामें चन्द्रमाए क लकीरकेसाकारदिखाई देगामेरेपास एक यीहैमेरेयाबदतों के पास दोगी उसमेंएकदि साबलिखाहै उससे चाहेजिससालकाधागेका हाल ग्रह काठीक टीकमालूमकरलो भला जोकोई उसयंत्रीको देख करविसी मोटेनाने अरोग्यमनुस्य कोयह कहने लगेरितूसाठ दिनमें मरजावेगातोसिवाधूनके इसकोक्पाकहैं। (प्रश्नाभाईजोनिय तो ठीक है और उसमें मनुष्य कासमन्त्रशुभकाहालभीजानपडनाहै परन्तु कोई विचारनेगलाहीनहीहैनहीनो पूरीविध मिलजावे । उत्तर) अच्छाऐसाकहनेसेनोकुछ ऐसी हा नी नहीं परन्तु इतनी छपाकरोकिजवनककोई पूराजोतिषीपैदानहोनवनकडून ठेजोनि यके ग्रन्योको टोशाले में लपेटकर पोरशुभ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034854
Book TitleJain Aur Bauddh ka Bhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHermann Jacobi, Raja Sivaprasad
PublisherNavalkishor Munshi
Publication Year1897
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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