SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२) मऊ सक्ने कि इनके बारह पत्रके पत्रमें उन सबदेव ताओं के नाम जिनकी संख्या नेतीस करोड बनाते हैं कैसे अक्षरों में लिखी हुइहै हमको तोकिसी बड़ेपत्रों के ग्रन्थमें तेनीस करोड़ अक्षर भी नहीं दीखते नाम स्थान के लिखने को तो बड़ा भारी एक दफ्तर चाहिये और देखो कि जब किसी की गाय या भैंस माहमें या भादों में व्या जावेतो यह उसको प्रभुभवातब ताकर आप उसको मालिक से लेलेते हैं सावन कीव्य ई घोड़ी बुरी बना आपही छीन लेते पशुही नहीं बलके उसके साथ और भी अन्नादिसामग्री दानक गते हैं वह सब आप प्रपनी जातिको लेते औरदि वाते हैं भोले भाले लोग इतनी बुद्धि नहीं दौड़ाने कि उस परमेश्वर ने माघके महीने सदी की ऋतु में हम को भैसका गाढा दूध दिया गरम गरम च्याप पीकर प्रानन्दकरेंगे और हमारे बच्चे पीवेंगे याकिसीमाता पिता दिया अतिथि की सेवा इस दुग्ध से करेंगे भग बान ने एक पशु के दो पशु कर दिये दिनमें घोडी ब्याई हमारे अहोभाग्यरात्रिके ब्यानेमें बच्चाही घोड़ी के पैरों में कुचला जानाभादांमें गोउ व्याई ईश्वरकी बड़ी ही कृपा हुई इस क्रतुमें घास वहुन है हमको बिना परिश्रमकिये ही माना के समान Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034854
Book TitleJain Aur Bauddh ka Bhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHermann Jacobi, Raja Sivaprasad
PublisherNavalkishor Munshi
Publication Year1897
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy