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________________ बरी कर दिये बहं देवनो होनहीं सकते उनकोचाण्डा |ल कहोतो ठीक भीहै और पुजारियों कोजोकदोसो थोड़ा भला यह कोई बुद्धिमताहै कि एक मनुय्यया एक फिरके को सूर्य करहोजाये और सबपरशान्ति हो हमनो देखते हैं जेष्टमास मैसूर्यसबकोगरम-धोरमा पूषमें सबको नरम किसी ने इसके विरुद्ध एकको नरम बागरम होने दयेनदेने होंगे और यहभीजोमा नाजावे किपिन्त प्रकृति वाले को गरम और बातलस भाव के मनुष्य या पशुकोसूर्य नरम होतोउसकाय नशीनल ओषधियों से करना उचितहै औरयहतो कछ समझमें ही नहीं माना किज्योनिषयों कोलोहा नाबा सोना चौदी कपड़ा अनाज भैंस बकरी सनराई निल आदि पदार्थ भेट करनेसे सूर्यादिग्रह क्योंझटन म होजाने हैं क्या यह पोपवाडकौतडकेत श्रादिउन ग्रहों के नहसील के सिपाहीहैजोइन को टैक्स देने सि यह ग्रह शान्नि होजाते हैं क्या यह उनकी विरादरी कि हैं याउन के रिशने दार औरसबप्रजाके शत्रु हैं। भाईलोगसूर्यचन्द्रमा किसी को कुछ नहीं कहनेय हितो यही ज्योनयी ग्रहकीमूनी बन कर पाने है और तुम्हाराधनयहीग्रहण और हरण करलेने हैं प्रनासबको चन्द्रमादि करनहीं होसकतेजिम - - - - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034854
Book TitleJain Aur Bauddh ka Bhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHermann Jacobi, Raja Sivaprasad
PublisherNavalkishor Munshi
Publication Year1897
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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