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________________ और एयवी में गाड़ीहेयस उस मूवक कहनेतेषा|| पसमें लड़ने लगते हैंहमने अाजनक कहीं नहींदे वाकियाकी की बनाई चोरी प्रकरहईहाँकभी एसा तो हवाकि किसीचालाक ने यहाकर कहदि| याकि मुमको बाकीने चोरकोभी मौरजहाँ मेरीब स्नु छिपाईधरीहै सब बताई है परमैं चाहताकि किसी का रोष प्रकट नहो बस मेरीचीजगनकोमे रिघागन आदिमें फैंक दोनहीं कल अपने हाथसे निकाल लूंगा इस धोकेमें पाकरवाजानेचीजफेंक भीदी परन्नु यहठहै कि बाकी चोरको ज्योनिय से बनादे मला जो ऐसा होतोतोसार पुलिसक्योरय नी वसदो चार की ही काफीथे मेरेसामने देहरेदू नमें बाकी कीस्वी को कोई साफाउडाले गया बाकीनी सारे टकरमारकर ओर थानेपुलिसमें भी रपोट करके बैठरहे कहीं पता नहीं चला जब उसका ज्योतिष नहीं मालूम होगया होगा भलाजवषय नी ही चोरी का हाल नमिला तो दूसरों कोसाधूल वतानाहोगा- भाइयों इन ठगज्योतिषियों केधोके में कोई मन जावो ऐमी ऐसीधोकेकी बानेमुग को सहस्त्रयादहैं जोकोई सुनकर कहै किहोय ह पूरा ज्योतीपरन्तु ऐसी कपरकी बात लिखने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034854
Book TitleJain Aur Bauddh ka Bhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHermann Jacobi, Raja Sivaprasad
PublisherNavalkishor Munshi
Publication Year1897
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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