SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रोग मनुष्य की शारीरिक सुन्दरता का नाश कर देता है, पानेन्द्रियों को नियंत्र कर देता है, मनोवृत्तियों और बल का नाम कर देता और घन व कुशलता का गला घोंट डालता है। इससे बार बार मौत होती है और भावागमन का पचड़ा लगा रहता है । प्रत्येक जीव चाहे वह जितना ही प्यारा, अत्यन्त सुन्दर और महा ममतापूर्व हो परन्तु सदा के लिये शासों को मोट हो जाता है । तब मनुष्य असहाय, अकेला और निराश्रित मारकमारा चिरता है। उसके पास केवल उसके सामारिक प्रमों का पल रह जाता है और कुछ भी नहीं।" इसी तरह और और निम्न लिखित उदासीनता के बाप्प बह प्रायः बहा करता चा:___सब संगठित वस्तुओं का नाश होगा । जो कुछ गठित हैवानाश्य है, यह मिहीर बासन के समान है जो थोड़े बजे दुबड़े बड़े हो जावेगा, सचार के घर के बरा बर, रेत के बने हुए घर के या नदी रेतीले किनारेके सदृश है । सम्पूर्व गठित वस्तुएँ कार्य और कारण में परिणत। एक दूसरे में इस तरह मिदी दुई जिस तरह बीज में अंकुर, पद्यपि अंकुर बोलनहीहै।सानो और बुद्धिमान् दिखाज सूरतों के झंझट में नहीं फंसते । बार लिये वह लमही बो रगही जाती है, और वा वि से बह रगड़ जाती है और हापों का काम, ऐसी तीन बातचिन से भाग पैदा हो जाती है परन्तु वरबाग विलुप्त हो जाती है और वह ऋषिको उमे व्यर्थ होता है, अपना करता हुमा कहता है यह कहां मे भाई और कहां सी गई ? जब जीमहोठों या ताल गा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034854
Book TitleJain Aur Bauddh ka Bhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHermann Jacobi, Raja Sivaprasad
PublisherNavalkishor Munshi
Publication Year1897
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy