________________
( १३ )
वि० सं० २०२ में ओसवंशी पोलाक श्रावक ने भागम लिखा कर जैन श्रमणों को अर्पण किया था फिर समझ में नहीं आता है कि विक्रम की बारहवीं शताब्दी में जन्मे हुए खरतरों ने ओसवाल कैसे बनाये होंगे ?
५- - इसी स्थविरावली के पृष्ठ १६५ पर मुनिश्री ने लिखा है कि"भगवान महावीर के निर्वाण से ७० वर्ष के बाद पार्श्वनाथ को परम्परा के छुट्टे पट्टधर आचार्य रत्नप्रभ ने उपकेश नगर में १८०००० क्षत्रिय पुत्रों को उपदेश देकर जैनधर्मी बनाया । वहां से उपकेश नामक वंश चला । " .
-
उपरोक्त दोनों प्रमाणों का आधार आर्यहेमवंतसूरी कृत स्थविरावली है । आर्यहेमवंत विक्रम की दूसरी शताब्दी में हुए हैं ! जब विक्रम की दूसरी शताब्दी का यह प्रमाण रत्नप्रभसुरि ने उपकेशवंश स्थापित किया और वि० २०२ वर्ष ओसवंश वाले विद्यमान थे वे भी ओसवंश शिरोमणी थे तो उस समय ओसवंश विशाल संख्या में होने में शका ही कौन कर सकता है । आगे चल कर आप श्री शत्रुञ्जयतीथं की यात्रा करिये आपको वहां भी एक सबल प्रमाण के दर्शन होंगे ।
I
६ – आचार्य बप्प भट्टसूरि विक्रम की नौवीं शताब्दी के प्रारम्भ में हुए, उन्होंने ग्वालियर के राजा आम को प्रतिबोध कर विशद ओसवंश में शामिल किया । जिसका उल्लेख श्रीशत्रुञ्जय तीर्थ के शिलालेखों में मिलता है जैसे कि:
-
" एतश्च. गोपाहगिरौ गरिष्ठः श्री बप्पभट्टी प्रतिबोधितश्च । श्री आमराजोऽजनि तस्य पत्नी, काचित् बभूव व्यवहारि पुत्री || तत्कुक्षि जातः किल राज कोष्ठागाराह्नगोत्रे सुकृतैक पात्रः । श्री सवंशे विशदे विशाले तस्याऽन्वयेऽमी पुरुषाः ॥ "प्राचीन लेखसंग्रह भाग दूजा लेखांक १ ।”
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com