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भ्रंथ गर्भवति।
[७४ ] फिर आवो गुजरात ठिकाना, कानु मंडल भूम बंधाना। जहां होइ है अस्थान तुम्हारा, बहु ज्ञानका तुम करो बिचारा । इन देहीसं समझाव तोही. तम्हरो पंथ बिचल सब जाई । तुम्हरो भेख चले संसारा, तुम्हरे जीवका करो उबारा । तुम तो विंद साधना कीना, भग देख तुम बहुत डराना । जाते गर्भवासमें आई, तुम्हरो पंथ गंम नहि पाई । गोरखके मनमें असी आई, देह धो सिंधमें जाई । क्षत्रिघर तुम हो अबतारा, जुक्तही जुक्तसु करो उबारा ।
गोरख बचन। साखी-कहे गोरख सतगुरु सुनो, मैं लेहूं अवतार । फिर हमकुं कैसे मिलो, सतगुरु कहो विचार ।
कबीर बत्रन । कहे कबीर खोजत मिले, तुमही हसो अपार । खोजी मन संशय परे, फिर तुमकुं बूझे विचार ।। जब तुम . हमकुं खोजहो, फिर देहो दीदार | खोजीका संसा मिटे, सहजे होय उबार । जेसलमेरं वाही तरे, भाटीकुल रजपूत । . गुजरदेश पावन कियो, ज्ञानी ज्ञान अबधूत ।।
बटक बीजके मांडमें, देख भया मन थीर। : जन ज्ञानी संशय मिट्या, सतगुरु मिले कबीर ।। - इतिश्री गर्भावलि ग्रंथ गोरख कबीर संवाद संपूर्ण ।
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