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पवन स्वरोदय।
[३६J पूंछत में सुर दो बहे, गर्भ मांहि युग भाप । शून्य दिशा गर्भ शून्य कहु, मोतिदास अभिलाष ॥८४।। ऋतुवंती जो स्नान कर, पुष्य नक्षत्र जब आय । दहिने सुर त्रिय भोगई, बांझ पुत्र फल पाय ॥८५॥ बाये सुर रति कीजिये, तो कन्या होय बीर । जल पृथ्वी बीरज जमे, और न जामे नीर ॥८६॥ दहिनो सुर हो पुरुष को, डेरो सुर त्रिय देह । जल पृथ्वीमें रति करे, बांझ पुत्र फल लेह ।।८७।। निकसत श्वासा विज जमे, थोरी उम्मर होय । श्वास देहमें विज जमे, बडी आयु सुन लोय ॥८८॥ अकाश तत्व में बिज जमे, होता मरे बखान । वायु तच योगी कहो, की दिसंतरि जान ॥८९।। अग्नि तत्त्व रोगी सही, जीवे थोरी आव । नीर तत्त्व यश भोगिया, साहू पृथ्वी पाव ॥९०॥ युद्ध करन कोई चले, दहिनो सुर चहि बाज । बायें फौज दे शत्रुकी, लडे जीत शुभ काज ॥११॥ पक्ष वार तिथि सूर्य की, पृथ्वी तत्व ले मीत ।। दिशा सूर्य सुर दाहिनो, एक अनेकन जीत ॥१२॥ दोनों आनि जुरे जब, दहिनो सुर जब होय । जो कोई पहिले लडें, जीत तासुकी होय ॥९॥
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