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पवन स्वरोदय |
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देह को
पूरब उत्तर चंद्र स्वर, पश्चिम दक्षिण होगी हानी ताप मृत्यु, जाय बस्तर भूषण पहिरिये, ब्याह दान कर राजतिलक चेला करो, बाँयें स्वरकी घरकी नींव जु डारिये, रहिये नव घर मांहिं । वोये नाज जु खेतमें, चंद्रयोग शुभ आहिं || ४४ ||
औषधि दीजे योग कर, बूटि कल्प
कर कोय ।
ताल कूप खोदे कहूँ, चंद्रयोग
मंत्र साध पोथी लिखो, विद्या थिर कारज जेते सकल, चंद्र योग परसन भोजन मैथुना, युद्ध बाद कुंजल वाहन काज दे, दहिने स्वर के
ले
बैरी घर जो जाइये, ॠण राज दरशको गौन कर, दहिने उच्चाटन अरु वशिकरन, मारन दहिने स्वर के काज ये, आकर्षन
शुभ
और
के
मांगन जो
स्वरको
साधे
जो
ध्यान
होय
नाव बैठ जल पैरिये, शास्त्र शिष्य कर
चर कारज जेते सकल, दहिने
सुषमन चलत न चालिये, योग और कार्य बरजत सकल, करे
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स्वरके
सूर | नूर ॥४२॥
कर
प्रीति । नीति ॥ ४३ ॥
होय ॥ ४५ ॥
पढ़ाव |
भाव ॥ ४६ ॥
सैन |
ऐन ॥ ५० ॥
मीत ।
विपरीत ॥ ५१ ॥
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ब्याज |
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काज ॥४७॥
जाय ।
लाय ॥ ४८ ॥
जंत्र |
मंत्र ॥ ४९ ॥
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