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ज्ञान स्वरोदय |
[ १८ ]
जल पृथ्वी में स्वर चले.
सुफल काज दोनों करें, जो बाँयें पृथ्वी चलै,
आप पैठि दल पेलिये,
सुनो कान दे वीर । की पृथ्वी की नीर ॥१२७॥ चढि आवै कोइ भूप ।
बात कहत हूं
वायु तत्र जो यह वर्जित हौं कहूँ जाय जो
सूरज को दिन होय ॥ १३० ॥
पावक अरु आकाश तत, कछु काम ना कीजिये, दहिने स्वर के चलत ही, तीन पांव आगे धेरै, बांयें स्वरके चलत ही, वाम पाँव धर चार । वात्रा पग आगै धेरै, होय चंद को वार ॥१३१॥ दहिने स्वरके चलत ही, दहिन पाँच घर तीन । बांयें स्वर के चार हैं, बाँये केर प्रवीन ॥ १३२ ॥
गर्भ परीक्षा ।
गूप ॥ १२८ ॥ होय । तोय ॥ १२९ ॥
कोय ।
।
गभवती के गर्भ की, जो कोइ पूछे आय । बालक है की बालकी, जी की मरि जाय ॥ १३३ ॥ दहिने स्वर चलत ही, जो कोइ पूछे आय । वाको बाँया स्वर चलें, बालक व्है मरि जाय ॥ १३४ ॥ दहिने स्वर के चलत ही, जो कोइ पूछे बैन | वाको दहिना स्वर चलें, बालक होय सुख चैन ॥ १३५ ॥ बाँयें स्वरके चलत ही, आय कहै जो कोय | लडकी होय जी नहीं, वाको दहिनो होय ॥ १३६ ॥
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