SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ १७ ] सूरज मंडल चीर के, योगी सत्य शब्द सोई लहै, कृष्ण पक्ष के मध्य ही, दक्षिणायन पावै पद राजा होय योगी काया छोडि है, राज पाय सतनाम भजै, पूरवली योग युक्ति पावै बहु, दूसर मुक्त उत्तरायण सूरज लखै, शुक्ल योगी काया त्याग ही, मुक्त होय बहुरै नहीं, बूंद समुद्र हि मिलि गई, दक्षिणायन सूरज रहैं, फिर उतरायन आय के, दोनों स्वरको साधिके, श्वासामें भेद स्वरोदय पाय के, संग्राम जो रन ऊपर जाईए, जीत होय हारे नहीं, दुर्जन को स्वर दाहिनो, जो कोई पहिले चढि सकै, सुषमन चलत न चालिये, सीस कटाय के भाजि हो, ज्ञान स्वरोदय । त्यागे प्राण । निखान ॥ ११७ ॥ में भान । पक्ष के यामें संशय नांहि ॥ १२० ॥ जनम खोज मिटि जाय । दूजा नहि ठहराय ॥१२१॥ रहै मास षट जान । रहै मास पट मान || १२२ || मन राख । तत्र काहूं सों भाख ॥ १२३॥ परीक्षा । निदान ॥ ११८ ॥ पहिचान | निधान ॥ ११९ ॥ माँहि । २ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat दहिने स्वर परकास : करै शत्रु को नास ॥ १२४॥ अपनो दहिनो खेत जीत है होय | सोय ॥ १२५ ॥ युद्ध करन को मीत । दुर्जन की होय जीत ॥ १२६॥ www.umaragyanbhandar.com
SR No.034841
Book TitleGyan Swaroday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKabir Sadguru
PublisherKabir Dharmvardhak Karyalay
Publication Year1949
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy