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[ १३ ]
कारज
जो दहिना स्वर बंध है, तेज वचन वासों कहो, मनसा जब स्वर भीतर को लै, कारज तासों यह वायक कहो, मनसा
पूछे
पूरन
पूछै
पूरन
पूछै
जो दहिनो स्वर बंध है, कारज जो बंध बांयो सूर है, मनसा जव स्वर बाहिर को चलै, तब कोई पूछे वाको ऐसा भाषिये, नहि कारज विधि
पूरन
पूछै
'चंद चलावै दिवसकूं, रात
चलावै
पीवैं
नित ही साधन जो करै, उमर पांच घडी पांचों चलै, सोई दश श्वासा सुषमन चले, ताहि बांयें करवट सोइये, बांयें स्वर जल दहिने स्वर भोजन करे, तब सुख पावै बायें स्वर भोजन करे, दहिने दिन दश रोगी सो करै, आवै दहिने स्वर झाडे फिरै, बांयँ जुगती काया साधिये, दीन्हा आठ पहर दहिनो चलै, बदले तीन वरस काया रहै, जीव करे सोलह पहर जबही चले, श्वासा
युगल वर्ष काया रहै, पीछे
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होय
दहिनो विचारो
रोग
लँगूसे भेद
ज्ञान स्वरोदय |
कोय |
|
होय ॥७३॥
नाहीं
फिर
पिंगला
रहनन
कोय |
होय ॥७४॥
कोय ।
होय ||७५ ||
तोय | होय ॥ ७६ ॥
सूर
भरपूर ||७७||
होय ।
लोय ॥ ७८ ॥
पीव ।
जीव ॥ ७९ ॥
नीर ।
शरीर ॥८०॥
गौन ॥ ८२ ॥
मांहि ।
नांहि ॥ ८३ ॥
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काय ।
बताय ॥ ८१ ॥
पौन ।