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[११] ज्ञान स्वरोदय। ब्याह दान तीरथ जो करै, भूषन पहिरे घर पग धरै ।। बांयें स्वरमें यह सब कीजै, पोथी पुस्तक जो लिखि लीजै ॥ साखी-बांये स्वर के काज यह, सो मैं दिये बताय । दहिने स्वरके कहत हूं, ज्ञान स्वरोदय मांय ॥५८॥
सूर्ययोग के कार्य। जो खांडा कर लिया चाहै, जाके वैरी ऊपर बाहै । युद्ध बाद रन जीतै सोई, दहिने स्वर में चाले कोई ॥ भोजन करे करे अस्नाना, मैथुन कर्म भानु परधाना ॥ यह लेखै कीजै व्यवहारा, गज घोडा वाहन हथियारा ॥ विद्या पढे नहि योग अराधे, मंत्र सिद्धि नहि ध्यान अराधे ।। वैरी भवन गवन जो कीजै, और काहु को ऋण जो दीजै ॥ ऋण काहू पै जो तूं मांग, विष अरु भूत उतारन लागै ॥ सत्य कबीर जगजीत विचारी, यह चर कर्म भानु की लारी ॥
गमन परीक्षा। चर कारज को भान है, थिर कारज को चंद । सुषमन चलत न चालिये, होय तह कछु दंद ॥५९॥ गांव परगना खेत पुनि, इधर उधर जो मीत । सुषमन चलत न चालिये, कहैं कबीर जग जीत ॥६०॥ छिन बांयें छिन दाहिने, सोई सुषमन जान । ढील लगे वैरी मिले, होय काज की हान ॥६१।।
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