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ज्ञान स्वरोदय ।
पांच तत्त्वका ध्यान जु करही, प्राण आत्मा धोखे न परही ।। पांच तत्त्व सब अंग समाना, गुन अवगुन सब कहै बखाना ।। साखी-पांचों तत्त्व विचारिये, आदि अन्त टकसार ।
कहैं कबिर सों बांचही, भौजलमें कडिहार ॥१०॥
सत्कवीर वचन । इंगला पिंगला सुपमना, नाडी तीन विचार । दहिने बाँये सुर चले, लखै धारना धार ॥१॥ पिंगला दहिने अंग है, इँगला बाये होय । सुषमन इनके बीच है, जब सुर चाले दोय ॥२॥ जब सुर चाले पिंगला, ता मधि सूरज वास । इँगला बाँये अंग है, चन्द्र करै परकास ॥३॥ उदय अस्त इनको लखै, निरगुन सुर गम बीध ।
औ पावै तत बरन को, जब वे होवे सीध ।। ४ ।। कहैं कबीर धर्मदास सों, थीर सूर पहिचान । थिर कारज को चन्द्रमा, चर कारज को भान ॥५॥ कृष्ण पक्ष जबही लगे, जाय मिलै तहाँ भान । शुक्ल पक्ष है चन्द्र को, यह निश्चय करि जान ॥६॥ मंगलवार आदित्य दिन, और शनीचर लीन । शुभ कारज को मिलत हैं, सूरज के दिन तीन ।। ७ ॥
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