________________ 43 इन्द्रियजीत अति उर धीरज, शूर सदा भ्रम दूर अंदेसा / मायीक पास बिनाश कीये, शुद्ध ज्ञान प्रकाश दिवाकर जैसा / / मच्छर मान गुमान नहि, नित दान अभयपद दायक वेसा। इष्ट गुरु ब्रह्मानंद कहे, सहजानंद हे सुखसागर एसा // (ब्रह्म विलास) बगला बोलत रोषकर, मच्छी छांडहु भीर / संद्या बंदन करत हुं, दूर खडी रहो तीर // दूर खडी रहो तीर, अलौकिक रीत हमारी / मत पारो तन छांय, हमहि नैष्टिक ब्रह्मचारी // दाखत ब्रह्मानंद, कबुक मींचत दृग खोलत / मच्छी छंडहु भीर, रोष करी बगला बोलत // 2 // एक पग ठाड़े रहत है, मत कोउ जीव दुखात / कोउ बखत पर करत हे, ज्ञान ध्यानकी बात / ज्ञान ध्यानकी वात, काहुकु कबहुक कहेवे / कोउ सती भाविक रखे, तो दो दिन रहेवे॥ दाखत ब्रह्मानंद, कहत निज महातम गाढे / मत कोउ जीव दुखात, रहतहे एक पग ठाढे // 3 // भोरी मच्छी जायके, घरघर को सुनाय / अपने पनघट सिद्ध कोउ, बेठो ध्याम लगाय // बेठो ध्यान लगाय, चलो पूजनकुं जैये / महापुरुषके चरन, परस कर अति सुख पैये // Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com