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________________ [ ५६ ] ॐ ह्रीं हू: कर्णनासाधनं करोमि ॐ स्वाहा | -ब्रह्मसूरित्रिवर्णाचार | ऊँ ह्रीं श्रीं श्रहं बालकस्य हूः कर्णेनासावेधनं करोमि असि आउसा स्वादा - सोमसेन त्रिवर्णाचार | इससे ब्रह्मसूरित्रिवर्णाचार के मंत्रों का प्रांशिक विरोध पाया जाता है और उसे यहाँ बदलकर रक्खा गया है, ऐसा जान पड़ता है । इसी तरह पर और भी कितने ही मंत्रों का ब्रह्मसूरि-त्रिवर्णाचार के साथ विरोध है और वह ऐसे मंत्रों के महत्व अथवा उनकी समीचीनता को और भी कम किये देता है । (छ) भट्टारकजी ने ' अन्नप्राशन' के बाद और 'व्युष्टि' क्रिया से पहले ' गमन , नाम की भी एक क्रिया का विधान किया है, जिसके द्वारा बालक को पैर रखना सिखलाया जाता है । यथा: - अथास्य नवमे मासे गमनं कारयेत्पिता । गमनोचितंनक्षत्रे सुवारे शुभयोगके ॥ १४०॥ यह क्रिया भी आदिपुराण में नहीं है - आदिपुराण की दृष्टि से यह मिथ्या क्रिया है और इसलिये इसका कथन भी भगवज्जिनसेन के विरुद्ध है। साथ ही, पूर्वापर - विरोध को भी लिये हुए हैं; क्योंकि भट्टारकजी की तेतीस क्रियाओं में भी इसका नाम नहीं है । नहीं मालूम भट्टारकजी को बारबार अपने कथन के भी विरुद्ध कथन करने की यह क्या धुन समाई थी ! जब आप यह बतला चुके कि गर्भाधानादिक क्रियाएँ तेतीस हैं और उनके नाम भी दे चुके, तब उसके विरुद्ध बीच बीच में दूसरी क्रियाओं का भी विधान करते जाना और इसतरह पर संख्या आदि के भी विरोध को उपस्थित करना चलचित्तता, असमीक्ष्यकारिता अथवा पागलपन नहीं तो और क्या है ! इस तरह की प्रवृत्ति निःसन्देह आपकी प्रन्थरचना सम्बन्धी अयोग्यता को अच्छी तरह से ख्यापित करती है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034833
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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