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[ ५८ ] द्वादशाहात्परं नाम कर्म जन्मदिनान्मतम् । अनुकूले सुतस्यास्य पित्रोरगि सुखावहे ॥ ३८-८७ ॥
(च) त्रिवर्णाचार में, ' नाम ' क्रिया के अनन्तर, बालक के कान नाक बींधने और उसे पालने में बिठलाने के दो मंत्र दिये हैं और इस तरह पर 'कर्णवेधन ' तथा ' आंदोलारोपण ' नाम की दो नवीन क्रियाओं का विधान किया है, जिनका उक्त ३३ क्रियाओं में कहीं भी नामोल्लेख नहीं है । आदिपुराण में भी इन क्रियाओं का कोई कथन नहीं है। और इसलिये भट्टारकजी का यह विधान भी भगवज्जिनसेन के विरुद्ध है और उनकी इन क्रियाओं को भी मिथ्याक्रियाएँ' समझना चाहिये। ये कियाएँ भी हिन्दू धर्म की खास कियाएँ हैं
और उनके यहाँ दो अलग संस्कार माने जाते हैं। मालूम नहीं भट्टारकजी इन दोनों कियाओं के सिर्फ मंत्र देकर ही क्यों रह गये और इनका पूरा विधान क्यों नहीं दिया ! शायद इसका यह कारण हो कि जिस ग्रन्थ से
आप संग्रह कर रहे हों उसमें कियाओं का मंत्र भाग अलग दिया हो और उस पर से नाम किया के मंत्र की नकल करते हुए उसके अनन्तर दिये हुए इन दोनों मंत्रों की भी आप नकल कर गये हों और आपको इस बात का खयाल ही न रहा हो कि हमने इन कियाओं का अपनी तेतीस कियाओं में विधान अथवा नामकरण ही नहीं किया है । परन्तु कुछ भी हो, इससे आपके ग्रन्थ की अव्यवस्था और बेतरतीबी जरूर पाई जाती है।
यहाँ पर मैं इतना और भी बतला देना चाहता हूँ कि मेरे पास ब्रह्मसूरि-त्रिवर्णाचार की जो हस्तलिखित प्रति पं० सीताराम शास्त्री की लिखी हुई है उसमें आन्दोलारोपण का मंत्र तो नहीं-शायद छुटगया हो-परन्तु कर्णबेधन का मंत्र जरूर दिया हुआ है और वह नामकर्म के मंत्र के अनन्तर ही दिया हुआ है । लेकिन वह मंत्र इस त्रिवर्णा
चार के मंत्र से कुछ भिन्न है, जैसा कि दोनों के निम्नरूपों से प्रकट हैShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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