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________________ [ १६ ] के स्थान पर 'विद्यन्ते कामदा नित्यम्' यह नवीन पद जोड़ा गया है और इससे मूलका प्रतिपाद्य विषय भी कुछ कम होगया है। ( ४ ) श्रीजिनसेनाचार्यप्रणीत आदिपुराण से भी कितने ही पद्य उठाकर इस ग्रंथ में रक्खे गये हैं, जिनमें से दो पध नमूने के तौर पर इस प्रकार हैं व्रतचर्यामहं वक्ष्ये क्रियामस्योपविभ्रतः। कटयूरूरः शिगलिंगमनूवानव्रतोचितम् ॥ ६-६७ ॥ वस्त्राभरणमाल्यादिग्रहणं गुर्वनुक्षया । शस्त्रोपजीविवयंश्चेद्धारयेच्छस्त्रमप्यदः ।। ६-८० ॥ इनमें से पहला पद्य तो आदिपुराण के ३८ ३ पर्व का १०९ वॉ पद्य है-इसके आगे के और भी कई पद्य ऐसे हैं जो ज्यों के त्यों उठाकर रक्खे गये हैं और दूसरा उसी पर्व के पद्य नं० १२५ के उत्तरार्ध और नं० १२६ के पूर्वाध को मिलाकर बनाया गया है । पद्य नं० १२५ का पूर्वार्ध और नं. १२६ का उत्तरार्ध क्रमश: इस प्रकार हैं कृतद्विजार्चनस्यास्य व्रतावतरणोचितम् ।। पृ० १२५ ॥ खवृत्तिपरिरक्षार्थ शोभाथै चास्य तद्ग्रहः ॥ उ० १२६ ॥ मालूम नहीं दोनों पद्यों के इन अंशों को क्यों छोड़ा गया और उसमें क्या लाभ सोचा गया । इस व्यर्थ की छोड़ छाड़ तथा काट छाँट का ही यह परिणाम है जो यहाँ व्रतावतरण क्रिया के कथन में उस सार्व- . कालिक व्रत का कथन छूट गया है जो आदिपुराण के 'मद्यमांस परित्यागः' नामक १२३ वें पद्य में दिया हुआ है * । और इसलिये * 'व्रतावतरणं चेदं' से पहले प्रादिपुराण का वह १२३ वाँ पद्य इस प्रकार है मद्यमांसपरित्यागः पंचोदुम्बरवर्जनम् ।। हिंसादिविरतिश्चास्य व्रतं स्यात्सावकालिकम् ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034833
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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