SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [१६] और दसवें अध्याय में १३ पद्य सागार धर्मामृत से लिये गये हैं । इनमें से छठे अध्याय के दो पद्यों को छोड़कर, जिनमें कुछ परिवर्तन किया गया है, शेष ३२ पद्य ऐसे हैं जो इन अध्यायों में ज्यों के त्यों उठाकर रक्खे गये हैं । अनगारधर्मामृत से भी कुछ पद्य लिये गये हैं और आशाधर-प्रतिष्ठापाठ से भी कितने ही पद्यों का संग्रह किया गया है। छठे अध्याय के ११ पद्यों का आशाधर-प्रतिष्ठा पाठ के साथ जो मुकाबला किया गया तो उन्हें ज्यों का त्यों पाया गया। इन पद्यों के कुछ नमूने इस प्रकार हैं: योग्य कालासनस्थानमुद्रावर्तशिरोनतिः । विनयेन यथाजातः कृतिकर्मामलं भजेत्.॥१-६३ ॥ किमिच्छकेन दानेन जगदाशा प्रपूर्य यः । चक्रिभिः क्रियते सोऽहद्यज्ञो कल्पदुमो मतः ॥ ६-७६ ॥ जाती पुष्पसहस्राणि जप्त्वा द्वादश सदृशः । विधिनादत्त होमस्य विद्या सिद्धयति वर्णिनः ॥ ६-४॥ इनमें से पहला पद्य अनगारधर्मामृत के ८वें अध्याय का ७८ वाँ, दूसरा पद्य सागारधर्मामृत के दूसरे अध्याय का २८ वाँ और तीसरा पद्य आशाधर-प्रतिष्ठापाठ (प्रतिष्ठासारोद्धार ) के प्रथमाध्याय का १३ वा पद्य है । प्रतिष्ठापाठ के अगले नं० १४ से २४ तक के पद्य भी यहीं एक स्थान पर ज्यों के त्यों उठाकर रक्खे गये हैं। जीविते मरणे लाभेऽ लाभे योगे विपर्यये । बन्भ्वावरौ सुख दुःखे सर्वदा समता मम ॥१-६४॥ यह अनगारधर्मामृत के आठवें अध्याय का २७ वाँ पद्य है। इसका चौथा चस्स यहाँ बदला हुआ है--'साम्यमेवाभ्युपैम्यहम्' की जगह 'सर्वदा समता मम' ऐसा बनाया गया है। मालूम नहीं इस परिवर्तन की क्या जरूरत पैदा हुई और इसने कौनसी विशेषता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034833
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy