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________________ २४६ - ( ४ ) अमितगति-धर्मपरीक्षाके छठे परिच्छेदमें, 'यज्ञा' ब्राम्हणी और उसके जारपति 'बटुक' का उल्लेख करते हुए, एक पद्य इस प्रकारसे दिया है प्रपेदे स वचस्तस्या निःशेषं हृष्टमानसः। जायन्ते नेदृशे कार्ये दुष्प्रबोधा हि कामिनः॥४४॥ इस पद्यमें लिखा है कि 'उस कामी बटुकने यज्ञाकी आज्ञाको (जो अपने निकल भागनेका उपाय करनेके लिए दो मुर्दै लानेके विषयमें थी ) बड़ी प्रसन्नताके साथ पालन किया; सच है कामी पुरुष ऐसे कार्योंमें दुष्प्रबोध नहीं होते। अर्थात् , वे अपने कामकी बातको कठिनतासे समझनेवाले न होकर शीघ्र समझ लेते हैं। पद्मसागरजीने यही पद्य अपनी धर्मपरीक्षामें नं० ३१५ पर दिया है परन्तु साथ ही इसके उत्तरार्धको निम्न प्रकारसे बदलकर रक्खा हैः-- " न जाता तस्य शंकापि दुष्प्रबोधा हि कामिनः ॥" इस परिवर्तनके द्वारा यह सूचित किया गया है कि ' उस बटुकको उक्त आज्ञाके पालनमें शंका भी नहीं हुई, सच है कामी लोग कठिनतासे समझनेवाले होते हैं ' । परन्तु बटुकने तो यज्ञाकी आज्ञाको पूरी तौरसे समझकर उसे विना किसी शंकाके प्रसन्नताके साथ शीघ्र पालन किया है तब वह कठिनतासे समझनेवाला 'दुष्प्रबोध' क्यों ? यह बात बहुत ही खटकनेवाली है; और इस लिए ऊपरका परिवर्तन बड़ा ही बेढंगा मालम होता है। नहीं मालूम ग्रंथकर्ताने इस परिवर्तनको करके पद्यमें कौनसी खूबी पैदा की और क्या लाभ उठाया । इस प्रकारके व्यर्थ परिवर्तन और भी अनेक स्थानोंपर पाए जाते हैं जिनसे ग्रंथकर्ताकी योग्यता और व्यर्थाचरणका अच्छा परिचय मिलता है। श्वेताम्बरशास्त्र-विरुद्ध कथन । ..(५) पद्मसागर गणीने, अमितगतिके पद्योंकी ज्योंकी त्यों नकल करते हुए, एक स्थान पर ये दो पद्य दिये हैं: क्षुधा तृष्णा भयद्वेषौ रागो मोहो मदो गदः । : चिन्ता जन्म जरा मृत्युर्विषादो विस्मयो रतिः ॥ ८९२ ॥ खेदः स्वेदस्तथा निद्रा दोषाः साधारणा इमे ।। अष्टादशापि विद्यन्ते सर्वेषां दुःखहेतवः ॥ ८९३ ॥ ... इन पद्योंमें उन १८ दोषोंका नामोल्लेख है, जिनसे दिगम्बर लोग अर्हन्तदेवोंको रहित मानते हैं । उक्त दोषोंका, २१ पद्योंमें, कुछ विवरण देकर फिर ये दो पद्य और दिये हैं: . एतैर्ये पीडिता दोषैस्तैर्मुच्यन्ते कथं परे । सिंहानां हतनागानां न खेदोस्ति मृगक्षये ॥ ९१५ ॥ सर्वे रागिणि विद्यन्ते दोषा नानास्ति संशयः। रूपिणीव सदा द्रव्ये गन्धस्पर्शरसादयः॥ ९१६ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034833
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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