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________________ [२००] जहाँ जैसा मतलब निकालना हुआ वहाँ वैसा अर्थ कर देना ही आपको इष्ट रहा है ? यदि सोमदेवजी की नीति का है। प्रमाण देखना था तो उसमें तो साफ़ लिखा हैविकृतपत्यूढाऽपि पुनर्विवाहमहतीति स्मृतिकाराः । अर्थात्-जिस विवाहिता स्त्री का पति विकारी हो--या जो सदोष पति के साथ विवाही गई हो--वह भी पुनर्विवाह करने की अधिकारिणी है-अपने उस विकृत पति को छोड़कर या तलाक देकर दूसरा विवाह कर सकती है--ऐसा स्मृतिकारों का--धर्मशास्त्र के रचयिताओं का--मत है (जिससे सोमदेवजी भी सहमत हैं--तभी उसका निषेध नहीं किया)। यहाँ 'अपि' (भी) शब्द के प्रयोग से यह भी साफ़ ध्वनित हो रहा है कि यह वाक्य महज सधवा के पुनर्विवाह की ही नहीं किन्तु विधवा के पुनर्विवाह की भी विधि को लिये हुए है। स्मृतिकारों ने दोनों का ही विधान किया है। इस सूत्र की मौजूदगी में 'सकृत्परिणयन व्यवहाराः सच्छूद्राः' सूत्र पर से यह नतीजा नहीं निकाला जा सकता कि शुद्रों के सत् शूद्र होने का हेतु उनके यहाँ स्त्रियों के पुनर्विवाह का न होना है और इसलिये त्रैवर्णिकों के लिये पुनर्विवाह की विधि नहीं बनती-जो करते हैं वे सञ्छूद्रों से भी गये बीते हैं । इतने पर भी सोनीजी वैसा नतीजा निकालने की चेष्टा करते हैं, यह आश्चर्य है ! और फिर यहाँ तक लिखते हैं कि "जैनागम में ही नहीं, बल्कि ब्राह्मण सम्प्रदाय के भागम में भी विधवाविवाह की विधि नहीं कही गई है।" इससे सोनीजी का ब्राह्मणग्रंथों से ही नहीं किंतु जैनग्रंथों से भी खासा अज्ञान पाया जाता है--उन्हें ब्राह्मण सम्प्रदाय के ग्रंथों का ठीक पता नहीं, नाना मुनियों के नाना मत मालूम नहीं और न अपने घर की ही पूरी खबर है। उन्होंने विधवाविवाह के निषेध में मनु का जो बाक्य 'न विवाहविधावुकं विधवावेदनं पुनः' उद्धृत किया Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034833
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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