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________________ [ १८६ ] इस पद्य से यह स्पष्ट ध्वनि निकलती है कि इसमें ऐसी स्त्री को धर्म से न त्यागने की अथवा उसके साथ इतनी रियायत करने की जों बात कही गई है उसका मूल कारण उस स्त्री का दुष्टा न होना है और इसलिये यदि वह दुष्टा हो--अप्रियवादिनी हो अथवा भट्टारकजी के एक दूसरे पद्यानुसार अति प्रचण्डा, प्रबला, कपालिनी, विवाद कर्त्री, अर्थ चोरिणी, आक्रन्दिनी और सप्तगृह प्रवेशिनी जैसी कोई हो, जिसे भी * आपने त्याग देने को लिखा है - तो वह धर्म से भी त्याग किये जाने की अथवा यों कहिये कि तलाक़ की अधिकारिणी है, इतनी बात इस पद्य से भी साफ़ सूचित होती है | चाहे वह किसी का भी मत क्यों न हो । * वह पद्य इस प्रकार है: अतिप्रचण्डां प्रबलां कृपालिनीं, विवादकर्त्री स्वयमर्थचारिणीम् । श्राक्रन्दिनीं सप्तगृह प्रवेशिनीं त्यजेच्च भार्या दशपुत्रपुत्रिणीम् ॥३३॥ इस पद्य में यह कहा गया है कि 'जो विवाहिता स्त्री श्रति प्रचण्ड हो, अधिक बलवती हो, कपालिनी ( दुर्गा ) हो, विवाद करने वाली हो, धनादिक वस्तुएँ चुराने वाली हो, ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने अथवा रोन वाली हो, और सात घरों में - घरघर में - डोलने वाली हो, वह यदि दस पुत्रों की माता भी हो तो भी उसे त्याग देना चाहिये ।' इस पद्य के अनुवाद में सोनीजी ने 'भार्या' का अर्थ 'कन्या' ग़लत किया है और इसलिये आपको फिर 'दशपुत्रपुत्रिणीम् ' का अर्थ 'आगे चलकर दशपुत्र पुत्री वाली भी क्यों न हो' ऐसा करना पड़ा जो ठीक नहीं है । 'भार्या' विवाहिता स्त्री को कहते हैं । वास्तव में यह पद्य ही वहाँ असंगत जान पडता है । इसे त्याग विष; यक उक्त दोनों पद्यों के साथ में देना चाहिये था । परन्तु 'कहीं की ईंट कह का रोडा भानमती ने कुनबा जोटा' वाली कहावत को चरि तार्थ करने वाले भट्टारकजी इधर उधर से उठाकर रक्खे हुए पयाँ ..." की तरतीब देने में इतने कुशल, सावधान, अथवा विवेकी नहीं थे इसी से उनके ग्रंथ में जगह जगह ऐसी त्रुटियाँ पाई जाती हैं और यह बात पहिले भी ज़ाहिर की' जा 'चुकी है।' 70.2 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat 3% www.umaragyanbhandar.com
SR No.034833
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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