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"शानं ताकद पवामिविदुषांशानासवे यम्मतम् ।।१-२ " "मक्ष होमकुएरानां वक्ष्ये शास्त्रानुसारतः । महारकैकंसश्च रष्ट्वा निर्मलसंहिताम् ॥ ४-१०४ ।।
इसके सिवाय कहीं २ पर खास तौर से ब्रह्मसूरि, अथवा जिन. सेनाचार्य के महापुराण के अनुसार कथन करने की जो पृथक रूप से प्रतिज्ञा या सूचना की गई है उसे पहली प्रतिज्ञा के ही अंतर्गत अथवा उसी का विशेष रूप समझना चाहिये, ऐसी एक सूचना तथा प्रतिज्ञा नीचे दी माती है
श्रीब्रह्मसूरिदिजवंशरलं श्रीनपार्गप्रविबुद्धतत्वः पातु तस्यैवविलोक्यशालंकृतं विशषान्मुनिसोमलेनैः ॥३-१५० जिनसेनमुन नस्वा वैवाहविधिमुत्सवम् । वक्ष्येपुराणमार्गेण लौकिकाचारसिद्धये ॥ ११-२॥
इन सब प्रतिज्ञा वाक्यों और सूचनामों से ग्रंथ कर्ता ने अपने पाठकों को दो बातों का विश्वास दिलाया है
(१) एक तो यह कि, यह त्रिवर्णाचार कोई संग्रह प्रथ नहीं है बल्कि अनेक जैनप्रयों को देखकर उनके आधार पर इसकी स्वतंत्र रचना कीगई है।
(२)दूसरे यह कि इस ग्रंथ में जो कुछ लिखा गया है वह उक्त जिनसेनादि छहों विद्वानों के अनुसार तथा जैनागम के अनुकूल
•प्रय के नाम से भी यह कोई संग्रह प्रन्य मालूम नहीं होता और मासकी संधियों में से संपन्य प्रकट किया गया है। एक संधि नमूने के तौर पर इस प्रकार है
इति श्री धर्मरसिक शाले त्रिवाचार निरूपके महारक भी सोमसेन विरचिते मानवस्वाचमन संध्या तपनो नाम ती. पोऽयायः।
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