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[१४८] पूरा करने की व्यवस्था देते हैं ! * आपको यह भी खयाल नहीं रहा कि तीन दिन तक बारात के वहाँ और पड़े रहने पर बेठी वाले का कितना खर्च बढ़ जायगा और साथ ही बारातियों को भी अपनी आर्थिक हानि के साथ साथ कितना कष्ट उठाना पड़ेगा !!-यह भी तो बहुद्रव्यविनाश का ही प्रसंग था और साथ ही यज्ञ भी प्रारम्भ हो गया था जिसका कोई खयाल नहीं रक्खा गया--और न आप को यही ध्यान आया कि जिस ब्रह्मसूरि-त्रिवर्णाचार से हम यह पद्य उठा कर रख रहे हैं उसमें इसके ठीक पूर्व ही ऐसे अवसरों के लिये भी सद्यःशौच की व्यवस्था की है-अर्थात् , लिखा है कि उस वर तथा कन्या के लिये जिसका विवाहकार्य प्रारम्भ हो गया हो, उन लोगों के लिये जो होम श्राद्ध, महादान तथा तीर्थयात्रा के कार्यों में प्रवर्त रहे हों और उन ब्रह्मचारियों के लिये जो प्रायश्चित्तादि नियमों का पालन कर रहे हों, अपने अपने कार्यों को करते हुए किसी सूतक के उपस्थित हो जाने पर सद्यः शौच की व्यवस्था है + । अस्तु; भट्टारकजी को इस विषय का ध्यान अथवा खयाल रहा हो या न रहा हो और वे भूल गये हों या भुला गये हों परंतु
* यथा:विवाहहोमे प्रक्रान्ते कन्या यदि रजस्वला। त्रिरात्रं दम्पती स्यातां पृथक्शय्यासनाशनौ ॥ १०६ ॥ चतुर्थे ऽहनि संस्नाता तस्मिन्नग्नौ यथाविधि। विवाहहोमं कुर्यात्नु कन्यादानादिकं तथा ॥ १०७॥ + यथाः
उपक्रान्तविवाहस्य वरस्यापि स्त्रियस्तथा। होमश्राद्धमहादानतीर्थयात्राप्रवर्तिनाम् ॥ ८-७६. प्रायश्चित्तादिनियमवर्तिनी ब्रह्मचारिणाम् ।
इत्येषां खखकृत्येषु सच, शौचं निरूपितम् ॥ -200 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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