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________________ [१३६] १० दिनकी मर्यादा का उल्लेख किया है और इस तरह पर ब्राह्मण वैश्य दोनों ही के लिये १० दिनको मर्यादा बतलाई मई है । इसके सिवाय, एक श्लोक में वों की मर्यादा-विषयक पारस्परिक अपेक्षा (विस्वत, Ratio ) का नियम भी दिया है और उसमें बतलाया है कि जहाँ ब्राह्मणों के लिये तीन दिन का सूतक, वहाँ वैश्यों के लिये चार दिन का, क्षत्रियों के लिये पाँच दिन का और शूद्रों के लिये आठ दिन का समझना चाहिये । यया:-- प्रसूनेशमे चाहि द्वादशे वा चतुर्दशे। सूतकाशीयशुद्धिः स्याद्विप्रादीनां यथाक्रमम् ॥ ८-१०५ ॥ प्रसूतौ चैव निशेष दशाह सूतकं भवेत् । क्षत्रस्य द्वादशाई सच्छूद्रस्य पक्षमात्रकम् ॥ १३-४६ ॥ * त्रिदिनं यत्र विप्राणां वैश्यानां त्याच्चतुर्दिनम् । क्षत्रियाणां पंचदिनं शूद्राणां च दिनाएकम् ।।-४७ ॥ इन तीनों श्लोकों का कथन, एक विषय से सम्बन्ध रखते हुए भी, परस्पर में कितना विरुद्ध है इसे बतलाने की जरूरत नहीं; और यह ते स्पष्ट ही है कि तीसरे श्लोक में दिये हुए अपेक्षा-नियम का पाने दो श्लोकों में कोई पालन नहीं किया गया। उसके अनुसार ___ * इस श्लोक का अर्थ देने के बाद सोनीजी ने जो भावार्थ दिया देवा उनका निजी कल्पित जान पड़ता है-मूल से उसका कुछ सम्बन्ध नहीं है।मूल के अनुसार इस श्लोक का सम्बन्ध मागे पीछे दोनों मोर के कथना से है। भागे भी ६२ वें श्लोक में जननाशौच की मर्यादा का उल्लेख किया गया है। उस पर भी इस श्लोक की व्यवस्था लगाने से वही विडम्बना बड़ी हो जाती है। इसी तरह ४६ वें श्लोक के अनुवाद में जो उमोंने लिखा है कि राजा के लिये सूतक नहीं' वा भी मूल से बाहर की चीज़ है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034833
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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