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________________ [१८] सकते हैं। इसमें और सब बातें तो हैं ही परन्तु 'मुक्ति' इसके द्वारा अच्छी सस्ती बनादी गई है ! मुक्ति के इच्छुकों को चाहिये कि वे इसे अच्छी तरह से नोट कर लेवें !! सूतक की विडम्बना। (२०) जन्म-मरण के समय अशुचिता का कुछ सम्बंध होने से लोक में जननाशौच तथा मरणाशौच ( सूतक पातक) की कल्पना की गई है, और इन दोनों को शास्त्रीय भाषा में एक नाम से 'सूतक' कहते हैं । स्त्रियों का रजस्वलाशौच भी इसी के अन्तर्गत है। इस सूतक के मूल में लोकव्यवहार की शुद्धि का जो तत्त्र अथवा जो उद्देश्य जिस हद तक संनिहित था, भट्टारकजी के इस ग्रंथ में उसकी बहुत कुछ मिट्टी पलीद पाई जाती है। वह कितने ही अंशों में लक्ष्यभ्रष्ट होकर अपनी सीमा से निकल गया है-कहीं ऊपर चढा दिया गया तो कहीं नीचे गिरा दिया गया-उसकी कोई एक स्थिर तथा निर्दोष नीति नहीं, और इससे सूतक को एक अच्छी खासी विडम्बना का रूप प्राप्त होगया है । इसी विडम्बना का कुछ दिग्दर्शन कराने के लिये पाठकों के सामने उसके दो चार नमूने रखे जाते हैं: (क) वर्णक्रम से सूतक ( जननाशौच ) की मर्यादा का विधान करते हुए, आठवें अध्याय में, ब्राह्मणों के लिये १०, क्षत्रियों के लिये १२, और वैश्यों के लिये १४ दिनकी मर्यादा बतलाई गई है। परंतु तेरहवें अध्याय में क्षत्रियों तथा शूद्रों को छोड़कर, जिनके लिये क्रमश: १२ तथा १५ दिन की मर्यादा दी है, औरों के लिये यह पद्य, त्रैकिटों में दिये हुए पाठ भेद के साथ, हिन्दुओं के ब्रह्मपुराण में पाया जाता है (श० क.) और सम्भवतः वहीं से लिया ग या जान पड़ता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034833
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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