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(७१) पीछेसे उसका पश्चात्ताप करता है, उसके घर में लक्ष्मी इकट्ठी तो होती है, मगर स्वल्पकाल पर्यंत रह कर फिर निश्चयसे चली जाती है। जिस प्रकार दक्षिणमथुराका वासी धनदत्त सेठका पुत्र सुधन नामक था, उसकी लक्ष्मी निकल कर पराइ हो गई-परघरको चली गई (३८) तथा जो स्वल्प धनवान् होते हुए भी अपनी शकिके अनुसार खुद सुपात्रको दान देता है और दूसरे के पाससे दान दिलाता है, उस पुरुषको हे गौतम : परजन्म यानि भवान्तरमें सम्यक प्रकारसे धन मिलत है। जिस प्रकार उत्तरमथुरावासी मदनसेठके वहां अकस्मात् बहुत ऋद्धि. आ कर मिली (३९)
इन दोनों बोलके ऊपर सुधन और मदनसेठकी कथा कहते हैं।
"दक्षिणदेशमं दक्षिणमथुरा नगरी में धनदत्त नामक सेठ रहता था। वह कोटिद्रव्यका स्वामी था । उसको सुधन नामक पुत्र हुआ । वह सेठ पांचसो शकट करियाणासे भर कर नोकरके साथ परदेशमें बेचनेके लिये भेजता. वह वहां पर करियाणां बेच कर पुनः दुसरे नये करियाणे ले आता । वैसेही कुछ न कुछ माल समुद्रमार्गसे भेजता और मंगावता। और कुछ व्याजु देता था और कुछ धन तो वरके भंडारमें रख छोडता था ।
अब उत्तरमथुरामें समुद्रदत्त नामक व्यवहारिया रहता था, उसके साथ उस सेठको बहुत स्नेह था-प्रीति थी। दोनों परस्पर एक दूसरेके ऊपर करियाणे बेचनेके लिये भेजते थे, उसमें बहुत लाभ होता था। एकदा
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