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निधानमें मिट्टी निकली है; अतएव उसको क्षेत्र जमीन रूप धन दिया है । तीसरेके निधान में बहियां व खत पत्रादि हैं, उससे यह फलित होता है कि जितना धन व्याजु दिया हुआ है यानि लोगोंके पास जो लेना है वह धन उसको दिया हुआ है । और सबसे छोटे भाइको सोना तथा रत्न जो घर में हैं वह दिये हैं । ' यह सुनकर चारोंने हिसाब कर देखा तो सबके हिस्से में लाख लाख टकेकी पूंजी होती थी । वह देखकर चारों भाइयोंने राजाके पास जा कर कहा कि-' हे स्वामिन् ! सुबुद्धिने हमारे झगड़ेका निपटारा कर दिया है ' । यह सुनकर राजा प्रसन्न हुआ और सुबुद्धि लोक में प्रसिद्ध हुआ । और दूसरा पुत्र लोगों में हांसीपात्र होकर एवं निंदा पाकर कुबुद्धिया के नामसे लोकमें प्रसिद्ध हुआ ।
उस समय कोई ज्ञानी गुरु उस वनके उद्यानमें पधारे । उनको वंदना करनेके लिये राजा तथा प्रधान अपने पुत्र सहित तथा अन्य लोग भी गये । वंदना कर और धर्मोपदेश श्रवण कर प्रधानने सुबुद्धि दुर्बुद्धि नामक दोनों पुत्रोंके संबंध में गुरुसे प्रश्न किया, तब गुरु कहने लगे कि - ' हे प्रधान ! इसी नगर में एक विमल और दूसरा अचल नामक दो वणिक रहते थे; परन्तु दोनोंके स्वभाव मिलते नहीं थे । उनमें से विमलने दीक्षा ली, देवगुरु सिद्धांतकी भक्ति की, सिद्धान्त पढे, उनके अर्थको जान लिया, दूसरे साधुओंको भी पढाये, आखिरमें आचार्य पद पाये, उस समय बहुत जीवको धर्मोपदेश दे कर अपना आयुष्य पूर्ण करके दूसरे देवलो
कमें देवता हुआ ।
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