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चार निधान निकाले । उनमेंसे प्रथम बडे भाई के निधानमंसे केश निकले, दूसरेके निधानसे मिट्टी निकली, तीसरेके निधानसे बहियां व कागजात निकले
और चौथेके निधानमेंसे सुवर्ण तथा रत्न निकले । इससे वह छोटा भाइ तो हर्षित हुआ और तीन भाइ चिंतित हो कर कहने लगे कि-' पिताने बडाही पक्षपात किया । अकारण अपनेसे वैर रक्खा । सीर्फ एक छोटा पुत्रही वल्लभ था, इस लिये इसकोही सर्व लक्ष्मी दे दी; परन्तु यह अन्याय हम सहन नहीं करेंगे । चारों भाई मिल कर यह लक्ष्मी बांट लेंगे । तब छोटा भाई कहने लगा कि- ' मुझको पिताने जो निधान दिया है, उसमेंसे मैं किसीको कुछ भी न दूंगा। इस प्रकार रात्रिदिन परस्पर लडने लगे । कोइ किसोका बचन मानता नहीं ।
फिर तीनों भाइओंने जा कर राजाके प्रधानको सब बात कही, परंतु प्रधानसे भी उसका न्याय नहीं हुआ, जिससे तीनों भाइ शोकाकुल हुए। उस समय में प्रधानका पुत्र सुबुद्धि वहां आया । उसके सामने चारों निधानों के सम्बन्धमें सब हाल कह सुनाया। सुबुद्धिने कहा कि-' राजाका देश होवे, तो मैं तुम्हारा झगडा निपटा दूं।' राजाने आदेश दिया, तव सुवुद्धिने चारों भाइऑको एकांतमें बुलाकर कहा कि- तुम्हारा पिता बहुत चतुर था, उसने चारों भाइको लाख लाख टका देनेका कहा है; क्योंकि बड़े भाई के निधान में केश रक्खे हुए हैं, अतः घोड़े, गौ, भेंस, ऊंट आदिक जो चोपद रूप धन है, वह उसको दिया है । और दूसरेके
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