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(२) उसके उत्तर प्रारंभ किये हैं । एकंदर ६४ गाथाओम ग्रंथकी समाप्ति की गई है।
हमारे पास यह कहनेका कुछ भी साधन नहीं है , कि इस ग्रन्थके कर्ता कौन आचार्य हैं ?। परन्तु इसकी रचना परसे इतना अवश्य कह सकते हैं , कि- इसके कर्ता कोई प्रचीन जैनाचार्य हैं । मूल और इसकी संस्कृत टीकाको, जामनगर वाले पंडित हीरालाल हंसराजने छापकर प्रकाशित किया है। आज हम हमारे हिन्दीभाषाभाषी भाइयोंके कर कमलों में इसका हिन्दी अनुवाद सादर समर्पित करते हैं । हमारी यह भी आशा है कि-हम इस लायब्रेरीके द्वारा हिन्दी संसारके उपयोगी और भी अन्यान्य ग्रंथ प्रकाशित करें। शासनदेव हमारी इच्छा पूर्ण करावें, यही अभ्यर्थना ।
बेलनगंज-आगरा. अशाड शुक्ला ५ वी. सं. २४४७ । अमरपद वद.
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