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(३७) युषी हुए और आगामी भवोंमें भी महा दुःखी होंगे। अतः जीववध नहीं करना चाहिये । कहा है:“ जीववधे पापज करे, आणे हिये कुबुद्धि । भारी कर्मा जीव जे, ते पामे किम सिद्धि ॥१॥"
इस प्रकार आठवें प्रश्रके उत्तरमें शिवकुमार-यज्ञदत्तकी कथा कही । अब नववे प्रश्नका उत्तर एक गाथा द्वारा कहते हैं:
मारेइ जो न जीवे दयावरो अभयदानसंतुट्ठो। दीहाऊ सो पुरिसो गोयम ! भणियो न संदेहो ॥२५॥
जो जीवोंकी हिंसा नहीं करता, दयावान होता है और अभयदान देकर संतुष्ट रहता है, वह जीव मरकर आगामी भवमें संपूर्ण आयुवाला होता है, इस विषयमें हे गौतम, जराभी संदेह मत कर ।
__ ऐसी जीवदया पालनेसे दामनक दीर्घायुष्यवाला हुआ था । इसलिये यहाँ दामनक की कथा कही जाती है:___“ राजगृही नगरीमें जितशत्रु राजा राज्य करता था । उसको जयश्री नामकी रानी थी। उस नगरमें मणिकार नामक एक श्रेष्ठी था, जिसकी स्त्रीका नाम सुयशा था । इनको दामनक नामक पुत्र हुआ । यह जब आठ वर्षका हुआ, तब इसके माता-पिता मरगये । दामनक बहुत दरिद्र था, इसलिये वह धनिगृहस्थोंके घरोंमें भिक्षावृत्तिकर अपना निर्वाह करता था । एकदिन दो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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