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( २१) दसणवयसामाइयपोसहपडिमाअबंभसच्चित्ते । आरंभपेसउद्दिवज्जए समणभूए अ ॥ १ ॥
इस प्रकार प्रतिमाका आराधन करते हुए आनन्दका शरीर अति दुर्बल हो गया ।
इस प्रकार धर्मजागरण करते हुए अनशनका मनोरथ उत्पन्न हुआ । तब संलेषणा ( आहार त्याग) करके अनशन किया । तदनंतर अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ । उस समय श्रीमहावीर स्वामी उद्यानमें पधारे। और श्रीगौतमस्वामी छटकी तपस्याके पारणे भिक्षाके निमित्त नगरमें पधारे । स्वामीजी अन्न-पाणी ले कर जब पीछे लौट रहे थे, तब कौल्लाग ग्रामकी ओर बहुत लोगोंको जाते हुए देख कर गौतमस्वामीने पूछा कि-ये लोग कहां जा रहे हैं ? तब किसीने कहा कि-हे महाराज! आनन्द श्रावकने अनशन किया है, उनको वंदना करनेको वे जा रहे हैं । यह श्रवण कर गौतमस्वामी भी आनंद श्रावकको वंदन कराने के लिये पधारे । उनको आते हुए देख कर आनंद श्रावक अत्यंत हर्षवंत हुआ और कहने लगा कि-हे महाराज ! मैं उठकर खडा नहीं हो सकता । अतः आप निकट पधारें, तो आपके चरणका स्पर्श मेरे मस्तक द्वारा मैं करूं । यह श्रवण कर श्रीगौतमस्वामी उनके निकट पधारे। तब आनन्द श्रावकने त्रिधा शुद्धिपूर्वक अपना मस्तक गौतमस्वामीके पैरसे लगा कर वंदना की और पूछा कि-हे महाराज ! गृहस्थको अवधिज्ञान उपजे ? गौतमस्वामी बोले कि-हां,. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com