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( १५२ ) भव्यजनो ! तुम भावसे सदैव धर्म अधर्मके फलको प्रकट विचारो, धर्म आराधो (६३) अब इस शास्त्रमें प्रभोत्त. रकी गाथाकी संख्या कहते हैं । ४८ प्रश्नोत्तरोंकी ६४ गाथाएं हुई। ऐसा श्रीगौतमपृच्छा रूप जो ग्रंथ यद्यपि वह महा अर्थ रूप है तथापि यहां संक्षेपसे कहा (६४)
®®®®®®® @ गौतमपृच्छा समाप्ता ।
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