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जिसका हृदय दयासे पूर्ण है उस पुरुषको भवांतर में कोइभी असुहामणी ऐसी वेदना नहीं होती ( ५८ ).
जिस प्रकार सुप्रतिष्ठित नगर में चंदन नामक सेठ. मिथ्वात्वी था, पश्चात् वह दृढ प्रतिज्ञावंत श्रावक हुआ, उसका पुत्र जिनदत्त था, वह सबको अभीष्ट वल्लभ हुआ । और अत्यंत सुखी हुआ । उस चंदन सेठ और जिनदत्तकी कथा कहते हैं
" सुप्रतिष्ठित नगरमें चंदन नामक व्यवहारिया रहता था वह मिथ्यात्वी था परंतु परिणामसे भद्रक था । उसकी वाहिणी नामक स्त्री थी । एकदा शान्त, दान्त गुणोंके धारक, धर्मवन्त, क्रियावंत ऐसे दो साधु उसके घरको आये । वहां प्राशुक उपाश्रय जान वे सेठकी आज्ञा लेकर उसमें रहे। उन साधुओंकी संगतिसे सेठ तथा उसकी स्त्रीने जैनधर्म पाकर व्रत - प्रत्याख्यान - नियम लिये | तथा साधुके संसर्गसे सेठकी गोत्रदेवीभी सम्यकदृष्टि वाली हुई ।
अब वह साधु विहार करके अन्यत्र गये । सेठ अपनी स्त्री सहित पहले व्रतका आराधन करने लगा, परन्तु गृहस्थरूप वृक्षका फल जो पुत्र, वह सेठको नहीं था जिससे सेठ सेठानी दोनों चिंतातुर रहते थे । पुत्रके लिये कुलदेवीकी आराधना करने के लिये कंकु, कपूर, चंदन और पुष्पके द्वारा कुलदेवीको पूजे, भूमिपर शयन करता, तपस्या करता । इस प्रकार करते हुए कुलदेवी प्रसन्न हुइ | प्रत्यक्ष आकर कहने लगी कि हे सेठ ! जो तू
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