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(९३७) पांचसो गांव मिले, जिसकी सम्हालके लिये एक राठोडको . अधिकारी करके भेजा। वह राठोड रौद्र परिणामी, क्षुद्र बुद्धि व महा पापकर्मी था, वह पांचसो गांवकी चिंता करता अधिक कर लेता, नये कर बैठाता, लोगोंके शिर कुडे कलंक चढा कर व अन्याय करके उन्हें दंडित करता उसने लोगोंको निद्रव्य किये । कमती ज्यादा बात करके लोगोंको पीटता, बांध कर प्रहार करे, सतावे, इस प्रकार पाप कर्म करता रहा, जिससे इसी भवमे उसको कास, श्वास, ज्वर, दाह, कुखशूल, भगंदर, हरस, अजीर्ण, चक्षुवेदना, कर्णवेदना, पुंठशूल, खस (पामा), कुष्टि, जलोदर, वेग और वायु ये सोलह महारोग उत्पन्न हुये जिनके द्वारा अति उपद्रवको प्राप्त होकर आर्त रौद्र ध्यान धर कर मृत्यु पा कर पहली नरकमें गया। वहां छेदन, भेदन, ताप ताडनादि अनेक कष्ट सहन किये। फिर वहांसे निकलकर विजयराजाका पुत्र हुआ है। और वह नपुंसक, दुःखी, अति वेदनासे पीडित है । उसने पापके उदयसे एक भवमें अत्यंत दुःखका अनुभव किया है।"
__अब ४४ वीं पृच्छाका उत्तर एक गाथाके द्वारा कहते हैं।
जो सत्तो वियाणत्तो मोआवेइ बंधणाउ मरणाउ । कारुण्णपुण्णहियओ णो असुहा वेयणा तस्स ॥ ५८ ॥ ____ अर्थात्-जो पुरुष पीडा युक्त ऐसे जीवोंको सांकल बंधन रूप वेदनासे व मृत्युसे मुक्त कराता है
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