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(१२७) भावार्थ-जो लोग हमारी पूजा करते हैं वे स्वयमेव-अपनी इच्छासेही-गुण देख करके करते है, क्योंकि जन है वह गुणरत्न युक्त है अर्थात् मनुष्य मात्र गुणोंकी पूजा करते हैं इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है ।
और तूने नो यह कहा कि-ब्राह्मणकी पूजा करनेवाला स्वर्ग में जाता है, यह भी असत्य है, क्योंकि ब्राह्मण जो अपवित्र, अब्रह्मका सेवन करनेवाला, खेती करनेवाला, घरमें गौ, महिषी आदि पशुओंको रख कर उनका पालन करनेवाला तथा जो निर्दयी होता है उसकी पूजा करनेसे स्वर्गकी प्राप्ति नहीं होती है ।
पुनः तूने कहा कि-हम यज्ञमें छागका वध करके उसे स्वर्गमें भेज सकते हैं-ऐसे हम पुण्यात्मा है, वह भी तेरा कथन असत्य है, क्योंकि तेरेही शास्त्रमें कहा है किः
यूपं छित्वा पशून हत्त्वा कृत्वा रुधिरकर्दमम् । यथैवं गम्यते स्वर्ग नरके केन गम्यते ॥ १ ॥
अर्थात् -यूपको छेद कर, पशुओंको मार कर, भयंकर हिंसासे रुधिरका कर्दम करके मनुष्य यदि स्वर्गमें जावे तो फिर नरकमें कौन जायगा ?
इस प्रकार युक्ति प्रयुक्तिके द्वारा सर्व नगरवासी लोगोंके देखते हुए शिष्यने अग्निशर्मा ब्राह्मणको पराजित किया। जिससे ब्राह्मण क्रोधायमान हो कर अपने घरको चला गया। फिर रात्रिको अकेला वनमें जा कर
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