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(१९१ ) रखा । बडा हुआ, तब लोगोंके ढोरोंको चारता, हल खेडता, लोगोंकी सेवा करता, दास हो कर रहता, महिनत मजदूरी करता, और शीर पर बोज वहन करता, तो भी पेट भरना दुर्लभ होता ।
एकदफे धन कमानेके लिये देशान्तरको चला, वहां लक्ष्मी प्राप्त करने के अनेक उपाय किये, परंतु कर्मयोगसे दरिद्रीही रहा । अब वहां एक षण्मुख नामक देव था, उसके ऊपर लोगोंका बहुत विश्वास था, उसके समक्ष धनप्राप्तिके लिये उपवास करके बैठा । सातवें दिन देव प्रत्यक्ष हो कर बोला कि-तू उपवास किस वास्ते कर रहा है ? तब दरिद्रीने कहा कि-लक्ष्मीके लिये करता हुँ । देवताने कहा कि-लक्ष्मीका मिलना तेरे भाग्यमें नहीं है । दरिद्री बोला कि-तब तो मैं यहां ही मरना चाहता हूं। ऐसी उसकी हठ जान कर देवताने कहाप्रभातमें यहां सुवर्णका मोर नृत्य करेगा, वह नित्यप्रति एक पिच्छ सुवर्णका छोड देगा, वह तू ले लेना । ऐसा कह कर देव अदृश्य हुआ।
प्रातःकालमें सुवर्णका एक पीछ मिला, इस प्रकार नित्य प्रति एक पीछ लेते २ एकदा दरिद्रीको कुबुद्धि उत्पन्न हुई और विचार किया कि, इस जंगलमें कहां तक रहे ? अतः इस मोरको पकड कर एकही साथ उसके सर्व पीछ ले लूं । ऐसा सोच करके मयूरको पकड लिया, कि शीघ्रही मयूरका काग हो गया, और देवताने आ कर दरिद्रीको लातका प्रहार किया, जिससे
वह गिर गया। शुरूसे मयूर के जितने पीछ लिये थे ___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com