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(९९) मातपिताके आगे बात कही। आज्ञा ले कर, गुरुके दर्शनसे आजका दिन सफल मान कर देवपूजा की, पुण्यकी अनुमोदना की और पञ्चखाण लेकर अपनी आत्माको कृतार्थ माना। वे चारों पुत्रिएं एकही स्थानमें बैठीथीं। उस असेंमें विद्युत्पात हुआ, जिससे चारों पुत्रिएं मृत्यु पा कर देवता हुई। वहांसे चव कर तेरी पुत्रिएं हुई हैं। केवल एकही दिन तप करनेका यह फल हुआ। यह बात सुनतेही राजा, रानी और उनके पुत्र-पुत्रियों को जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ। पूर्वके भव याद आये, जिससे वैराग्य पा कर श्रावकधर्म अंगीकार किया और अपने घरको आये। फिर एकदफे वासुपूज्य भगवान् आ कर समोसरे। उनको राजा तथा रोहिणी राणी परिवार सहित वंदना करनेको गये। वहां प्रभुकी देशना सुन कर घरको आये और पुत्रको राज्यपाट देकर, सात क्षेत्रोंमें धन लगा या और चारित्र अंगीकार कर, दोनों मोक्षमें गये । कहा है :
रोहिणी पंचमी तप तणां गिरुवां ए फल जाण । दुःख न होय सुख होय सदा बोले केवली वाण ॥९॥
अब तीसवीं गाथाका उत्तर एक गाथाके द्वारा कहते हैं :
महुघाय अग्गिदाहं अंकं वा जो करेइ पाणीणं । बालारामविणासी सो कुट्ठी जायए पुरिसो ॥ ४५ ॥ अर्थात्-जो पुरुष मध और मधपुडा गिरावे, महुपा
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