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( ९८ ) . पार कर व दयावंत हो कर उनको धर्मदेशना दी । यह सुन कर सातों भाइयोंने वैराग्य पा कर दीक्षा ली, चारित्र पाल कर देवलोकमें गये। वहांसे चव कर तेरे वहां पुत्ररूपसे उत्पन्न हुए हैं । और आठवां पुत्र जो वैताढय पर्वत पर भल्लक नामक विद्याधर था, वह नंदीश्वर द्वीपमें शाश्वत जिनप्रतिमाकी पूजा, यात्रा और धर्मका सेवन करता था; वह मृत्यु पा कर सौधर्म देवलोकमें देव हुआ । वहांसे चव कर तेरा लोकपाल नामक आठवां पुत्र हुआ है । जिसको सातवीं मंजलसे तूने गिराया और देवताने बचाया था । और जो तेरी चार पुत्रएं हैं, वे पूर्वभवमें वैताढय पर्वतमें विद्याधर राजाकी पुत्रियां थी। अनुक्रमसे यौवनावस्थाको प्राप्त हुई, तब एकदा बागमें क्रीडा करनेको गई, वहां साधुको देखे । साधुने उनको कहा कि-हे कुमारिकाओ! तुम धर्म करो। तब उन्होंने कहा, हमसे धर्मकरणी नहीं होती। फिर साधुने कहा, तुम्हारा आयुष्य स्वल्प रहा है, अतः धर्मकरणीमें प्रमाद मत करो। यह सुन कर उन पुत्रियोंने पूछा कि, हमारा आयुष्य कितना बाकी रहा है ? साधुने कहा, आठ प्रहर शेष रहा है । पुत्रियां कहने लगी, इतने अल्प कालमें क्या पुण्य करें ? मुनिने कहा, आजही शुक्ला पंचमी है अतः ज्ञानपंचमीका तप करो। ऐसा करनेसे तुम सुखी हो जाओगी । कहा है किः
जे नाणपंचमिवयं उत्तमजीवा कुणंति भावजुया । उवभुंज अणुवमसुहं पावंति केवलं नाणं ॥ ऐसा उपदेश सुन कर उन पुत्रियोंने घरमें आ क
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