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ऐसी अवस्था होनेके कारण लोगोंकी इस आदर्श सम्बन्धी भक्ति और धर्मभावनाको जागृत रखने के लिए स्थूल मार्ग स्वीकार करना पड़ता है | जनताकी मनोवृत्ति के अनुसार ही कल्पना करके उसके समक्ष यह आदर्श रखना पड़ता है । जनताका मन यदि स्थूल होनेके कारण चमत्कारप्रिय और देवदानवोंके प्रतापकी वासना वाला हुआ तो उसके सामने सूक्ष्म और शुद्धतर आदर्शको भी चमकार एवं दैवी बाना पहनाकर रखा जाता है । तभी सर्वसाधारण लोग उसे सुनते हैं और तभी वह उनके गले उतरता है। यही वजह है, कि उस युग में धर्मभावनाको जागृत रखनेके लिए उस समयके शास्त्रकारोंने मुख्य रूपसे चमत्कारों और अद्भुतताओं के वर्णनका आश्रय लिया है। इसके अतिरिक्त दूसरी बात यह है कि जब अपने पड़ौस में प्रचलित अन्य सम्प्रदायोंमें देवता ई बातों और चमत्कारी ' प्रसंगों का बाजार गर्म हो तब अपने सम्प्रदाय के अनुयायियों को उस ओर जाने से रोकनेका एकही मार्ग होता है और वह यही कि अपने सम्प्रदायको टिकाए रखनेके लिए वह भी विरोधी और पड़ोसी सम्प्रदाय में प्रचलित आकर्षक बातोंके समान या उससे अधिक अच्छी बातें' लिखकर जनता के सामने उपस्थित करे। इस प्रकार प्राचीन और मध्ययुग में धर्मभावनाको जागृत रखने तथा सम्प्रदाय को मजबूत करनेके लिए भी मुख्य रूप से मंत्र-तंत्र, जड़ी-बूटी, दैवी चमत्कार आदि असंगत प्रतीत होने वाले साधनों का उपयोग होता था ।
गाँधीजी उपवास या अनशन करते हैं । संसारके बड़े से बड़े साम्राज्य के सूत्रधार व्याकुल हो उठते हैं। गाँधीजीको जेलसे मुक्त करते हैं; फिर पकड़ लेते हैं और दुबारा उपवास प्रारम्भ होने पर
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