________________
( ४२ ) त्रैकालिक सत्यस्वरूप होता है । इसके अतिरिक्त जब उस शास्त्रको त्यागी गुरु या विद्वान पंडित बाँचता है तब तो इस भोली जनताके मन पर शास्त्र के अक्षरार्थकी यथार्थताकी छाप वज्रलेप सरीखी हो जाती है । ऐसी अवस्थामें शास्त्रीय वर्णनोंकी परीक्षा करनेका और परीक्षापूर्वक उसे समझानेका कार्य अत्यन्त कठिन होजाता है, और विशिष्ट वर्गके लोगोंके गले उतरनेमें भी बहुत समय लगता है और वह बहुतसा बलिदान माँगता है। ऐसी स्थिति सिर्फ जैनसम्प्रदाय की ही नहीं किन्तु संसारमें जितने भी सम्प्रदाय हैं सबकी यही दशा है और इस बातका समर्थक इतिहास हमारे सामने मौजूद है। ___ यह युग विज्ञानयुग है । इसमें दैवी चमत्कार या असंगत कल्पनाएँ टिक नहीं सकतीं। अतएव इस समयके दृष्टिकोणसे प्राचीन महापुरुषोंके चमत्कारप्रधान जीवनचरितोंको पढ़ें तो उनमें बहुतसी असम्बद्धता और काल्पनिकता नज़र आवे, यह स्वाभाविक है। , परन्तु जिस युगमें ये वृत्तान्त लिखे गए, जिन लोगोंके लिए लिखे गए और जिस उद्देश्यसे लिखे गए, उस युगमें प्रवेश करके, लेखक
और पाठकके मानसकी जाँच करके, उसके लिखनेके उद्देश्यका विचार करके, गम्भीरतापूर्वक देखें तो हमें अवश्य मालूम होगा कि इस प्राचीन या मध्ययुगमें महान पुरुषोंके जीवनवृत्तान्त जिस ढंग से चित्रित किए गए हैं वही ढंग उस समय उपयोगी था । आदर्श चाहे जितना उच्च हो, उसे किसी असाधारण व्यक्तिने बुद्धि शुद्ध करके भले ही जीवनगम्य कर लिया हो, फिर भी साधारण लोग इस अति सूक्ष्म और अति उच्च आदर्शको बुद्धिगम्य नहीं कर सकते । तो भी उस आदर्शकी ओर सबकी भक्ति होती है, सब उसे चाहते हैं, पूजते हैं।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com