________________
( १२ ) अवतरित हुआ । तेरासीवें दिन | तू जा और देवकीके गर्भ में मेग जो इन्द्रकी आज्ञासे उसके सेनापप्ति नैग-| शेष अंश आया हुआ है, उसे वहाँ से मेषी देवने इस गर्भ को क्षत्रिय- | संकर्षण (हरण) करके वसुदेवकी कुण्ड नामक ग्रामके निवासी सिद्धार्थ
ही दूसरी स्त्री रोहिणीके गर्भ में प्रवेश क्षत्रियकी धर्मपत्नी त्रिशला रानीके ! कर, जो बलभद्र रामके रूपमें गर्भमें बदल कर उस रानीके पुत्री अवतार लेगा और तू नन्दपनी यरूप गर्भको देवानन्दाकी कोखमें शोदाके घर पुत्री रूप में अवतार रख दिया । उस समय उस देवने पायेगी । जब मैं देवकीके आठवें गर्भ इन दोनों माताओंको अपनी शक्तिसे | के रूप में जन्मंगा तब तेरा भी यशोदा खास निद्रावश करके बेभान-सी के घर जन्म होगा । एक साथ जन्मे बना दिया था। नौ मास पूर्ण होने हुए हम दोनों का, एक दूसरेके यहाँ पर त्रिशलाकी कोखसे जन्म पानेवाला, परिवर्तन होगा। विष्णुकी भाज्ञा वही जीव, भगवान् महावीर हुआ। शिरोधार्य करके उस योगमाया शक्ति गर्भहरण करानेसे पूर्व इसकी सूचना ने देवकीको योग निद्रावश करके इन्द्रको आसनके काँपनेसे मिली थी। | सातवें महीने उसकी कोखमें से इन्द्रने आसन के काँपने के कारणका शेष गर्भका रोहिणीकी कुक्षि में संहविचार किया तो उसे मालूम हुआ कि रण किया। इस गर्भसंहरण करने तीर्थकर सिर्फ उच्च और शुद्ध क्षत्रिय का विष्णुका हेतु यह था कि कसको, कुलमें ही जन्म लेसकते हैं, अतः तुच्छ जो देवकीसे जन्मे हुए बालकोंकी गिभिखारी और नीच इस ब्राह्मणकुलमें नता करता था और आठवें बालकको महावीरके जीवका अवतरित होना अपना पूर्ण शत्रु मानकर उसका नाश योग्य नहीं है । ऐसा विचार कर इन्द्र करनेके लिए तत्पर था, गिनती करने ने अपने कल्पके अनुसार,अपने अनु- | में शिकस्त देना । जब कृष्णका घर देवोंके द्वारा याग्य गर्भ-परिवर्तन | जन्म हुआ तब देवता आदि सबने कराकर कर्तव्य पालन किया । महा । पुष्प आदिकी वृष्टि करके उत्सव मबीरके जीवने पूर्व भवमें बहुत दीर्घ- नाया। जन्म होते ही वसुदेव तत्काल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com