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લખી અમારું દુઃખ વ્યક્ત કરે અને આ હિંસાજન્ય કાર્યવાહી બંધ કરાવે. પત્રનો મુસદ્દો આ પ્રમાણે છે :
साधु-साध्वी शिबिर, गुर्जरवाडी
लक्ष्मीनारायण लेन माटुंगा ( बंबई-१९)
ता. १७-११-६१ श्रीमान् मंत्रीजी
बौद्ध विहार, वरली ( बंबई ) सादर प्रभु-स्मरण
" बंबई के उपनगर माटुंगा में लगभग ४॥ महीने से एक साधुसाध्वी शिबिर चल रहा है। उसमें विश्व की साधुसंस्था और साधक ( लोकसेवक ) संस्था की उपयोगिता और अनिवार्यता के बारे में अनेक प्रश्नों पर विस्तृत चर्चा की गई है। साधुसंस्था से सबसे बड़ी आशा सामूहिकरूप से अहिंसः एतं सर्वधर्मसमन्वय के विविध प्रयोग करने की रखी गई है। परंतु ता. १५-११-६१ के 'मुंबई समाचार' में इस प्रकार के समाचार आए हैं कि रंगून के नजदीक ओकालाया शहरमें २० बौद्ध साधुओं के नेतृत्व मे एक टोली सशस्त्र निकली, जिसने दो मुस्लिम धर्मस्थानों में आग लगा दी, मारपीट किया, और उन भाईओंको मुस्लिम धर्मस्थान बनाने से रोका। फलतः दोनों धर्मवालों के बीच दंगा फिसाद हुआ। इसमें बौद्ध साधुओं ने सशस्त्र उक्त मुस्लिम धर्मस्थान में अड्डा जमा लिया। पुलिस तथा सत्ताबालों के समझाने पर भी वे नहीं हटे। अतः सरकार को गोलीबार और धरपकड़ का सहारा लेना पड़ा। " इस समाचार से शिबिरार्थी साधु-संन्यासियों और साधक-साधिकाओं को अत्यन्त दुःख हुआ है।"
" जिन बुद्ध भगवान ने 'अवैर से वैर शांत होता है' यह उपदेश Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com