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অল্পদিষ্কা, इकट्ठा किया हुआ सुख, मुक्ति सुखके आगे बिन्दु भी नहीं है । पाठको ! ये नव तत्त्व प्रकाशित हो गये, उनके ऊपर पक्का विश्वास रखना, उसे जैन शास्त्रकार सम्यग्दर्शन कहते हैं। और उनका यथार्थ परिचय करना, उसे सम्यग्ज्ञान कहते हैं । जैनदर्शनमें ज्ञानके पांच भेद बतायें हैं मतिज्ञान-श्रुतज्ञान-अवधिज्ञान-मनःपर्याय ज्ञान, और केवलज्ञान । इनमें पहिले दो ज्ञान दरअस्लमें परोक्ष हैं। तो भी व्यवहारमें सच्ची प्रवृत्ति करानेसे चक्षुरादिजन्य ज्ञानोंको व्याव. हारिक प्रत्यक्ष कहा है । वह व्यावहारिक प्रत्यक्ष चार प्रकारका है, अवग्रह-ईहा-अवाय-धारणा । ये, मतिज्ञानमें दाखिल किये हैं । और अनुमान-स्मरण-प्रत्यभिज्ञान-तर्क ये भी मतिज्ञानके भेद समझने चाहिये । श्रुतज्ञानमें आगम प्रमाण दाखिल होता है। तात्पर्य यह हुआ कि प्रमाण दो प्रकारका है--प्रत्यक्ष और परोक्ष । प्रत्यक्ष भी दो प्रकारका, सांव्यवहारिक-और पारमार्थिक । परोक्ष प्रमाण पांच प्रकारका है-स्मरण-प्रत्यभिज्ञान-तर्क-अनुमान और आगम । इनमें आगमको छोडकर सब परोक्ष प्रमाण, और अवग्रह-इहा-अवाय धारणा ये सांव्यवहारिक प्रत्यक्षके चार भेद,मतिज्ञानमें दाखिल होते हैं और श्रुतज्ञान, आगमरूप है । अवधिज्ञान रूपी द्रव्योंको ग्रहण करनेवाला स्पष्ट वास्तविक प्रत्यक्ष है । मनके पर्यायोंको ग्रहण करने वाला मनःपर्याय ज्ञान, वास्तविक स्पष्ट प्रत्यक्ष है । और सर्वज्ञ पन है दूसरा नाम जिसका, ऐसा केवलज्ञान, समस्त लोक-अलोकका युगपत् (एक कालमें-एक साथ) सदैव स्पष्ट प्रकाश किया करता है । इस विषयमें गंभीर विचारणा यदि करनी हो तो यशोविजयजी गुरुदेवके बनाये हुए ग्रन्थोंको देखना चाहिये । और विशेषावश्यक टीका का अमृत रस पीना चाहिये । एवं नन्दि टीकाको निभालनमें लाना चाहिये ।
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