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प्रकाशकमहाशय का परिचय.
(संस्कृत श्लोकों का अनुवाद.) मारवाड फलोदी गाँव के (हालमें आगरे रहनेवाले) श्रीमान् श्रेष्टिवर्य लक्ष्मीचन्द्रजी वेद के चरणोपासक तीन पुत्र रत्न शोभते हैं। उनमें पहिला ज्येष्ठ श्रीमान् अमरचन्द्रजी, जो उत्तम चरित्र से विभूषित हैं, तथा सौम्यप्रकृति से चन्द्र की भांति आल्हाददायक हैं। दूसरा पुत्ररत्न श्रीयुत मोहनलालजी, जो कि बड़े अक्लमंद हैं तथा सदगुणों करके लोगों के हृदयका आकर्षण करनेवाले हैं ॥१॥
तीसरा पुत्ररत्न श्रीमान् फूलचंदजी, जिसने फूलमें से सुवासना* तथा चन्द्रमें से शीतलता गुण ले के उन दोनों असाधारण गुणोंद्वारा एक एक गुण को धारण किये हुए फूल तथा चन्द्र को जीता और अपना नाम बराबर सार्थक किया ॥२॥
उम्र से छोटे तथा बुद्धिसे बडे उसी (तीसरे कुमार) ने शेठजी का हुक्म ले के तथा अपने माननीय दोनों बड़े भाई साहबों की सम्मनि पा के अपनी हाथखची ही में से आनन्दप्रेस भावनगर काठियावाडमें इस (धर्मशिक्षा) पुस्तक को छपवाकर पबलीक में प्रकाशित किया ॥३॥
® कुमारके पक्षमें सुवासन। योनी अच्छी वासना-अच्छा संस्कार । फूलके पक्षमें मुडासना अर्थात् अच्छी खुशबू । शीतलता गुण तो दोनों पक्षमें समान ही है। इन द"नों गुण करके गुणात्मा बने हुए जिसने एक ही सुवासना गुण (शीतलता गुण नहीं होनेसे) वाले फूलको जीता । तथा एक ही शीतलता गुण (सुवासना गुण नहीं होनेसे ) वाले च. न्द्रको जीता। दोनों गुण व ले कुभारके आगे एक एक गुणवाले फूल तथा चन्द्रकी लघुता होना स्वाभाविक है ।
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