SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 210
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हमारी लायब्रेरी संबन्धी निवेदन पाठकों को विदित ही होगा कि लक्ष्मीचन्द्रजैनलायब्रेरी को स्थापित हुए आज करीब तीन वर्ष हुए हैं । थोडे अर्से की जन्मी हुई इस लायब्रेरी ने अपने कर्तव्यों को किसकदर पालन किया है यह उसके कामों से स्पष्ट ही प्रतीत होता है। इस पुस्तकालय में गुजराती हिन्दी उर्दू फारसी इंग्लीश संस्कृत भाषा की हजारों पुस्तकें मौजूद है। और प्रतिदिन बढती भी जा रही हैं। अलावा इनके हिन्दी गुजराती बङ्गाली इंग्लीश वगैरह भाषाओंके प्रसिद्ध प्रसिद्ध मासिक पाक्षिक साप्ताहिक दैनि क अखबार भी बहुत से आया करते हैं। मगर यह तो प्रसिद्ध ही बात है कि बालक का जीवन जैसे माता पिता वगैरह के सुकोमल करकमल युगल से आनन्दपूर्वक बढता जाता है-उदयश्रेणीपर आरोहण करता है, वैसे ही पूर्वोक्त छोटी-उम्रवाली पुस्तकालय पर सजनमहाशयों का हस्तावलम्बन होना बहुत अपेक्षित है और अवश्य होना चाहिए तब ही इस लायब्रेरी की उदयकिरणे सर्वत्र अस्खलित फैल सकेंगी। प्रत्येक जैनरन्धु का फर्ज है कि इस पुस्तकालय को उदय करने की चिन्ता में स्थापित रक्खें । निःस्वार्थी इस पुस्तकालय . का परम स्वार्थ यही है कि समाजमें वांचन का शौक बढाना, प्रजाको विद्यास्वाद के व्यसनी बनाना और परम सत्य सनातन निश्चल तत्त्व का प्रचार करना, बस ! यही उद्देश यही स्वार्थ और यही मतलब शासन देव पूरा करें यही अन्तःकरण से चाहता हूं। लेखकश्रीलक्ष्मीचन्द्र जैनलायब्रेरी लक्ष्मीपुत्र बेळणगंज-आगरा । फूलचंदजी वेद Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034803
Book TitleDharmshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherGulabchand Lallubhai Shah
Publication Year1915
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy