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अशिक्षा.
धमाशक्षा
अदेव बुद्धि, अगुरु गुरु बुद्धि, गुरुमें अगुरु बुद्धि, अधर्म में धर्म बुद्धि और धर्म में अधर्म बुद्धि नहीं रखनी चाहिए ।
इस विषय का जितना विवेचन किया जाय उतना थोडा है। मगर यह पुस्तक मोटी न हो जाय इस लिये गम्भीर विषय को भी दोही अक्षरों में पर्याप्त करना पड़ा है और इसीलिये-जगत्कर्तृत्व वगैरह विषयों के कुछ विशेष निवेदन करने को-पहले कह चुका हुआ भी आगे नहीं बढा हूँ। मौका मिला तो आगे देखा जायगा । ओं शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।
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समाप्ता धर्मशिक्षा. SSERESEASESSES
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